यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा
तो शुक्र कीजिए, कि अब कोई गिला नहीं रहा
न हिज्र है न वस्ल है अब इसको कोई क्या कहे
कि फूल शाख़ पर तो है मगर खिला नहीं रहा
ख़ज़ाने तुमने पाए तो ग़रीब जैसे हो गए
पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा
बदल गई है ज़िंदगी, बदल गये हैं लोग भी
ख़ुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा
जो दुश्मनी बख़ील से हुई तो इतनी ख़ैर है
कि ज़हर उस के पास है मगर पिला नहीं रहा
लहू में जज़्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है
कोई सवाल ज़हन को जो दे जिला, नहीं रहा