ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है- धरती की सतह पर -अदम गोंडवी- Adam Gondvi |-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita,
ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है ।
पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है ।
उससे मिलने को कई मोड़ से गुज़रना है ।
अभी तो आग के दरिया में भी उतरना है ।
जिसके आने से बदल जाए ज़माने का निज़ाम,
ऐसे इंसान को इस ख़ाक से उभरना है ।
बह रहा दरिया, इधर एक घूँट को तरसें,
उदय प्रताप जी वादे से ये मुकरना है ।