यूँही यूँही-प्राण गीत-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
भोर हुआ,
धूप चढ़ी,
शोर हुआ,
साँझ बढ़ी,
यूँही यूँही एक दिन निकल क्या।
प्राण तपे,
प्यास जगी,
मेघ घिरे,
झड़ी लगी,
यूँही यूँही हिय-हिमाद्रि गल गया ।
स्नेह चुका,
साँस थकी,
तिमिर झुका,
ज्योति बिकी,
यूँही यूँही एक दीप जल गया।
रुप हँसा,
रास रचा,
मिलन सजा,
विरह बचा,
यूँही यूँही एक स्वप्न छल गया।
जन्म रोया,
मृत्यु हँसी,
आयु लुटी,
धूल बसी,
यूँही यूँही बस मनुष्य ढल क्या।