यादें-कविता -स्वागता बसु -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Swagata Basu
जाने कितनी शामें गुज़री
जाने कितनी रात ढली
ढलती किरणों के संग सपने
किसको ढूंढे गली-गली
सन्नाटों ने दस्तक दी है
किन कदमों की आहट है
कौन है वो जो मुझतक आया
दिल को कितनी राहत है।।
घर का चौखट, वो चौबारे
वो आंगन, वो नीम की छाँव
यहीं से खुशियां चलकर आई
मेरे घर तक नंगे पाँव।।
जितनी थी खुशियाँ सँजोई
धीरे धीरे रीत गया
दिल से पतझड़ जाते जाते
मेरा सावन बीत गया।।
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