यहाँ पर तुम गाओ। तुम-आर्फ़ेउस- ऐसा कोई घर आपने देखा है अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
यहाँ पर तुम गाओ। तुम
क्यों कि आसन्न है मेरी मृत्यु
क्या मुझे भी कोई बुला लाएगा वहाँ से
अपने गीत के बल पर
जहाँ से लौटना नहीं होता?
गीत ही वहाँ से लौटा कर लाता है
गीत जो प्राण फूँकता है।
पर क्या गीत प्राण फूँकता है या यह विश्वास
कि गीत से फूँके गये प्राण के बल पर
तुम आ रही हो सतत अनुगामिनी?
गीत ही वह विश्वास देता है।
विश्वास! विश्वास! विश्वास!
गीत में श्रद्धा, या श्रद्धा में गीत?
मुड़ कर मत देखो उसे पाना है, उसे लाना है
तो उसे देखो मत!
अदृश्य, अदृष्ट ही वह आएगी
गाओ कि गीत से वह प्राण पाएगी
गीत ही है वह डोर जो उसे बाँधे है तुमसे
बुनते चलो तार!