मैं पीछे मुड़ कर देखूँगा और तुम्हारे प्राण-आर्फ़ेउस- ऐसा कोई घर आपने देखा है अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
चुक जाएँगे। मेरा गायन (और मेरा जीवन)
इस में है कि तुम हो, पर तुम्हारे प्राण
इस में हैं कि मैं गाता रहूँ और बढ़ता जाऊँ
और मुड़ कर न देखूँ। कि यह विश्वास
मेरा बना रहे कि तुम पीछे पीछे आ रही हो
कि मेरा गीत तुम्हें मृत्यु के पाश से मुक्त करता हुआ
प्रकाश में ला रहा है।
प्रकाश! तुम में नहीं है प्रकाश
प्रकाश! मुझ में भी नहीं है
प्रकाश गीत में है। पर नहीं
प्रकाश गीत में भी नहीं है; वह इस विश्वास में है
कि गीत से प्राण मिलते हैं। कि गीत
प्राण फूँकता है। कि गीत है तो प्राणवत्ता है
और वह है जो प्राणवान् है।
क्यों कि सब कुछ तो उसका है जो प्राणवान् है
वह नहीं है तो क्या है?