मैं, तुम और हम-नीरज कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Neeraj Kumar
जिसके लिए हम लड़े
कटे
मरे
आज वो बंद है
काश हम लड़े होते
रोटी
कपड़ा
मकान के लिए
काश हम लड़े होते
स्वास्थ्य
शिक्षा
रोज़गार के लिए
काश हम लड़े होते
स्कूल
कॉलेज
अस्पताल के लिए
फिर हम ज्यादा खुश होते
ज्यादा सम्पन्न होते
ज्यादा एकत्रित होते
ज़्यादा संगठित होते
कब समझेंगे हम
कब मानेंगे हम
कब जानेंगे हम
क्या जरूरी है
क्या ऐसे ही हम मंद बने रहेंगे
क्या ऐसे ही हम मूक बने रहेंगे
क्या हम ऐसे ही मूर्ख बने रहेंगे
कब उठाएंगे आवाज मानवता के लिए
कब बंद करेंगे लड़ना मैं और तुम के लिए
कब लड़ेंगे हम, हम के लिए
कब लड़ेंगे हम सब के लिए
कब लड़ेंगे
रोटी कपड़ा मकान के लिए
शिक्षा, स्वास्थ और विज्ञान के लिए
स्कूल, कॉलेज, अस्पताल के लिए
विकसित, शिक्षित, स्वस्थ संसार के लिए
या बस लड़ते रहेंगे
मंदिर, मस्जिद और देवस्थान के लिए
लड़ते रहेंगे सिर्फ और सिर्फ भगवान के लिए