मैं तुम्हारी तुम हमारे-लहर पुकारे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
“मैं तुम्हारी तुम हमारे!”
नयन में निज नयन भर कर
अधर पर सुमधुर अधर धर
साध कर स्वर, साध कर उर
एक दिन तुमने कहा था प्रेम-गंगा के किनारे।
“मैं तुम्हारी तुम हमारे!”
था कथित उर-प्यार हारा
मौन था संसार सारा
सुन रहा था सरित-जल, सब मुस्कुराते चाँद-तारे।
“मैं तुम्हारी तुम हमारे!”
अब कहीं तुम, मैं कहीं हूँ
अर्थ इसका मैं नहीं हूँ
शेष हैं वे शब्द, क्षत उर-स्वप्न, दो नयनाश्रु खारे।
“मैं तुम्हारी तुम हमारे!”
Pingback: लहर पुकारे -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj – hindi.shayri.page