मैं कौन हूँ-कविता-प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Praful Singh “Bechain Kalam”
मैं वो हूँ जो वास्तिविक है,
पर अस्तित्व में है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो अनास्तित्व है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो वर्तमान में है,
पर भूत में है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो भविष्य में है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो अनन्त तक है,
पर शाश्वत है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो क्षणभंगुर है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो प्रवाह में है,
पर गति में है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो स्थिर है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो पारदर्शी है,
पर रंगहीन है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो रंगीन है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो आंतरिक है,
पर अंदर है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो बाह्य है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?
मैं वो हूँ जो स्वतंत्र है,
पर स्वच्छंद है ही नहीं!
मैं वो नहीं हूँ जो नियंत्रित है!
अंततः अहं कः अस्मि कः नास्मि?