मैं अभी ग़ैर हूँ मुझको अभी अपना न कहो-गीत जाँ निसार अख़्तर-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ मुझको अभी अपना न कहो
मु : हाय मर जाएंगे मिट जाएंगे ऐसा न कहो
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ …
मु : दिल की धड़कन की तरह दिल में बसी रहती हो
ख़्वाब बन कर मेरी पलकों पे सजी रहती हो
क्या कहूँ तुमको अगर जान-ए-तमन्ना न कहूँ
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ …
यूँ न देखो के मेरी साँस रुकी जाती है
जो नज़र उठती है शरमा के झुक जाती है
मेरी नज़रों को मेरे दिल का तक़ाज़ा न कहो
मु : हाय मर जाएंगे …
राज़ क्यूँ राज़ रहे इसकी ज़रूरत क्या है
हमसे दामन न छुड़ाओ ये क़यामत क्या है
हम तो कहते हैं हमें शौक़ से दीवाना कहो
आ : मैं अभी ग़ैर हूँ …
मु : हाय मर जाएंगे …
(मैं और मेरा भाई)