मेरे जीवन तिनके को धर तुम सागर तर लेना-कविता-रामेश्वर नाथ मिश्र ‘अनुरोध’ -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rameshwar Nath Mishra Anurodh
असमंजस के महा सिंधु में जब मन डूब रहा हो,
मेरे जीवन तिनके को धर तुम सागर तर लेना,
अपनों के छल की बातें जब
होंठ नहीं कह पायें
दिल का दर्द उमडकर जब – जब
आँखों से बह जाये
अँगुली में आँचल लपेटती
प्रीत स्वयम को भूली –
गीत अमरता का गाने से
जब थोडा सकुचाये
आहत पंछी से उस छण में याद मुझे कर लेना,
मेरे जीवन तिनके को धर तुम सागर तर लेना,
असरहीन जब हो जायें
यौवन के जादू टोने,
कर में नहीं तुम्हारे हों
जब – जब खुशियों के दोने
इन्तजार करते करते जब
किसी अतिथि के कारण
लगो अचानक अश्रुकणों से
मंगल कलश भिगोने
शुद्ध समर्पण का नीराजन मेरे घर धर देना,
मेरे जीवन तिनके को धर तुम सागर तर लेना,
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