मेरे जीवन का सुख-दर्द दिया है-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।
हाथों को जो दिया खिलौना ऊषा ने
वह दिन की खींचा-तानी में टूट गया,
माथे पर जो मोती जड़ा सितारों ने
वह पतझरवाली गलियों में छूट गया,
आँगन चीखा, सेज-अटारी पछताई,
दृग भर लाई ढोलक, सिसकी-शहनाई
कोई श्याम हठी सूने वृन्दावन में
मोहन बन आया, पाहन बन चला गया ।
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।
मैंने रचा घिरोंदा जो सागर-तीरे
उसे बहा ले गई समय की एक लहर,
किसी नयन की नदिया में जा डूब गया
फूँका जो स्वर मैंने श्वास-बाँसुरी पर,
जिसे किया था प्यार फूल वह शूल हुआ,
जिसे किया था याद ज्ञान वह भूल हुआ,
मेरा हर अनमोल रतन इस मेले में
कंचन बन आया, रजकगा बन चला गया
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।
डाल गया था फूल मिलन जो अंचल में
उसे चुरा ले गई साँझ सूनी कोई,
विरह लिख गया था जो गीता अधरों पर
उसे याद कर बदली एक बहुत रोई,
कुछ दिन हँसने की तैयारी में बीता,
कुछ दिन रोने की लाचारी में बीता,
मन की रजनी का प्रभात तन के द्वारे
फागुन बन आया, सावन बन चला गया ।
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।
जो भी दीप जला संध्या के आँगन में
नहीं सुबह से उठकर नज़रें मिला सका,
जो भी फूल खिला उपवन की डाली पर
नहीं साँझ को झूला हँसकर झुला सका,
मुझे न कोई नज़र यहाँ ऐसा आता
सुबह-शाम से आगे जो बढ़कर गाता,
जिसने भी छेड़ा सितार यह साँसों का
गुंजन बन आया, क्रन्दन बन चला गया ।
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।
उस दिन पथ पर मिला एक सूना मन्दिर
सोये थे कुछ स्वर जिसकी दीवारों में,
आँगन में बिखरा था कुछ चन्दन-कुंकुम
अक्षत कुछ अटके थे देहरी-द्वारों में
मैँने पूछा तेरा कहाँ पुजारी है ?
वह जब तक कुछ कहे कि क्या लाचारी है ?
तब तक आँसू एक ढुलक मेरे दृग में
अर्चन बन आया, दर्शन बन चला गया ।
मेरे जीवन का सुख, दुख की दुनिया में,
बचपन बन आया, यौवन बन चला गया ।