मुक्तक-ठण्डा लोहा व कविता-धर्मवीर भारती-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati
एक –
ओस में भीगी हुई अमराईयों को चूमता
झूमता आता मलय का एक झोंका सर्द
काँपती-मन की मुँदी मासूम कलियाँ काँपतीं
और ख़ुशबू-सा बिखर जाता हृदय का दर्द!
दो –
ईश्वर न करे तुम कभी ये दर्द सहो
दर्द, हाँ अगर चाहो तो इसे दर्द कहो
मगर ये और भी बेदर्द सज़ा है ऐ दोस्त !
कि हाड़-बाड़ चिटख जाए मगर दर्द न हो !
तीन –
आज माथे पर, नज़र में बादलों को साध कर
रख दिये तुमने सरल संगीत से निर्मित अधर
आरती के दीपकों की झिलमिलाती छाँह में
बाँसुरी रखी हुई ज्यों भागवत के पृष्ठ पर
चार –
फीकी फीकी शाम हवाओं में घुटती घुटती आवाज़ें
यूँ तो कोई बात नहीं पर फिर भी भारी-भारी जी है,
माथे पर दु:ख का धुँधलापन, मन पर गहरी-गहरी छाया
मुझको शायद मेरी आत्मा नें आवाज़ कहीं से दी है!