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- 1 है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त
- 2 काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर
- 3 उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है
- 4 हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो
- 5 गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे
- 6 गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में
- 7 हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा
- 8 डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में
- 9 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
मुक्तकी -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj 7
है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त
है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त !
मुस्कराती आँख भी हर शबनमी लगती है दोस्त !
है बिछुड़ तुम से गई जब से उमर की राधिका
तब से अपनी सँस तक पी अजनबी लगती है दोस्त !
काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर
काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर
इस तरह गुजरी हरेक रात सुबह लाने में,
जैसे फट जाय कोई कीमती रेशमी साड़ी
नीचे पल्लू के जमीं गर्द के धुलवाने में!
उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है
उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है,
चढ़ने के लिए ही जो है बनी, वह धूप सदा चढ़ती ही है,
अफसोस न कर सलवट है पड़ी गर तेरे उजले कुरते में
कपड़ा तो है कपड़ा ही, आखिर कपड़ों पै शिकन पड़ती ही है ।
हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो
हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो,
कैंची है हाथ तो आँसू के पंख मत काटो,
खुद से आज़ाद ही होने की कला है कविता
दर्द को जाके खरीदो और प्यार को बाँटो।
गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे
गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे,
हर अँधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे,
फूल की गंध से तलवार को सर करना है
और गा-गाके पहाड़ों को जगाना है मुझे।
गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में
गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में,
फिर भी इस बाग़ से बाहर न निकल पाता हूँ
ढीठ काँटों से जो दामन मैं बचाता हूँ तो
शोख फूलों की निगाहों से उलझ जाता हूँ।
हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा
हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा,
कांधे पै उजालों का अरुण पट लेगा
ए तख़्त-नशीनो ! न यूँ ग़फलत में रहो
इतिहास अभी फिर कोई करवट लेगा।
डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में
डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में
इसको तेरे किसी अहसान की दरकार नहीं,
जो इबादत भी करे, और शिकायत भी को
प्यार का है वह बहाना तो मगर प्यार नहीं!
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