मुंतज़िर-ग़ज़लें-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Ghazals
मेरी तवज्जो का मरकज़ सिर्फ़ तू ही नहीं था
ग़म की और भी वजहें थीं महज़ तू ही नहीं था
अदावत में अगर नहीं तो मुरव्वत से ही सही
ज़ख्म औरों ने भी दिए फ़क़त तू ही नहीं था
हम-सफर रहा कोई तो बस यादों का क़ाफ़िला
मैं भी यहाँ अकेला था तन्हा वहाँ तू ही नहीं था
किस-किस की बात से दिल ना परेशाँ हुआ…
संगदिल सनम थे और भी एक तू ही नहीं था
दिलों में फासला कम करना मुश्किल ना था
मैं हमेशा मुंतज़िर था पर कभी तू ही नहीं था
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