मीर तक़ी मीर-पसन्दीदा कविता-शहीद भगत सिंह-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem|Kavita Shaheed Bhagat Singh
शमए-आख़ीर-शब हूं सुन सरगुज़शत मेरी
फिर सुबह होने तक तो किस्सा ही मुख़तसर है
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ऐ हुबे-जाह वालो जो आज ताजवर है
कल उसको देखीयो तुम न ताज है न सर है
अब के हवा-ए-गुल में सेराबी है निहायत
जू-ए-चमन पे सबज़ा मिज़गाने-चशमेतर है
शमए-अख़ीरे-शब हूं सुन सरगुज़शत मेरी
फिर सुबह होने तक तो किस्सा ही मुख़तसर है
अब फिर हमारा उसका महशर में माजिरा है
देखें तो उस जगह क्या इनसाफ़े-दादगर है
आफ़त-रसीद हम क्या सर खेंचें इस चमन में
जूं-नख़ले-ख़ुशक हमको न साया न समर है