मिल जाया कर-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
इस तरह ही मिल जाया कर
जीवित रहने का
भ्रम बना रहता है।
फ़िक्रों का चक्रव्यूह टूट जाता है
कुछ दिन अच्छे गुज़र जाते हैं
रातों को नींद नहीं उचटती
मिल जाया कर।
शाम सवेरे चलती है रहट
अच्छी लगती है
रहट की भरी बाल्टियों की कतार।
सुबह शाम के बीच
बचपन में सूरज देखना
याद आता है।
मिल जाया कर
तुझे याद कर इस ऋतु में
बहुत कुछ जागता है
मर्म में
सौंधी मिट्टी की महक
जागती है
चार चौफेरे कीट बोलते
मेंढकों के फूले हुए चेहरे
पीपल के पत्ते पर
लटकते जल बिंदु
बरगद के पत्तों के बल पर
तलते गुलगुले
रिंधती खीरें आवाज़ देती
निर्वस्त्र रूह लेकर
बारिश में भीगना चाहता हूँ
मिल जाया कर।
तुझसे मिले स्वप्न भी
दस्तक देने आ जाते हैं।
यही स्वप्न तो मुझे जीवंत रखते हैं।
रंगों की डिब्बियाँ
खोजने चल पड़ता हूँ जागते ही।
स्वप्नों में रंग भरने के लिए
उँगलियाँ तूलिका बन जाती हैं।
नक्श उभरते हैं
दो चार लकीरों के साथ।
मिल जाया कर।
चौगिर्द में मशीनी-से रिश्ते
सेवँइयाँ बटने वाली यंत्र-सी।
मैदा ठूसे जाओ
सेवँइयाँ उतारे जाओ।
दरिया की लहर-सा
अलौकिक नृत्य दिखता है भलेमानुष
तेरे आने से।
द्वार खड़कता है तो मन जागता है
गाढ़ी नींद टूटती है।
नींद का खुलना बहुत ज़रूरी है
मन की रखवाली के लिए
मिल जाया कर।
शब्द अँकुरते हैं कविता की तरह
तरबें छिड़ती हैं सरगम-सी
साज़ बजते हैं बिन बजाए
अनहद नाद गूँजता है।
मरदाने की रबाब याद आती है।
सच यार! मिल जाया कर।
बहते पानी में
ताज़गी बनी रहती है
इनसान का चित खिलता है।
दूषित पानी में कौन उतरता है?
मिल जाया कर।
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