मानवो, स्वागत तुम्हारा!-विंदा करंदीकर -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vinda Karandikar
पर्वतो, परे हटो! सागरो! दूर हटो!
खोल दिया द्वार मैंने, मानवो, स्वागत तुम्हारा।
तूफानों से कैसा डरना
वही तो मेरा गीत गाते
आँधियों को जन्म देता साँस का संसार मेरा।
भूख मेरी बढ़ गयी है
प्राण है फूला हुआ
फैले हुए हैं पंख मेरे, आकाश छोटा पड़ रहा।
जीत लिया है कालसर्प को
व्योमगामी होकर मैंने
चंचु विद्युत् हुई मेरी औ’ पंख पसारे मेघमाला।
एकाग्र हो साधे है मेरी
देह, विश्व-एकता
मानवों को बाँधने वालों की किस्मत आज कारा।
दुर्बलों को, दुःखितों को,
शापितों को, शोषितों को
क्षितिज की बाहों से है, आज आलिंगन मेरा।
(अनुवाद : रेखा देशपांडे)