मानवता का पुनर्जन्म-राजकुमार जैन राजन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajkumar Jain Rajan
आत्मा के अंधेरे कोनों में
चेतना की लौ
कहीं धुंधली हो गई है
मंदिर में बज़ते
ताल मजीरे के स्वर
कुछ पीड़ा देने लगे हैं
पत्थर के भगवान भी तो
कुछ देखते – सुनते नहीं
हमें तो जो रिक्त – तिक्त
जीवन मिला है
उसे हम जी रहे हैं
और कभी आँसू
कभी धुँआ पी रहे हैं
धर्म, नीति, आदर्श, आस्था
प्रेम और प्रेरणा
खोखले शब्द हे मात्र हमारे लिए
जो गूंजते है यदा -कदा
मन के सुने खंडहरों में
समाज की उझाड़ घाटियों ने
राजनीति के बीहड़ जंगलों में
पर इनसे मिलता नहीं
कोई अर्थ, कोई हुलास
सिर्फ एक स्वार्थी आवाज़
जो हमें बना देती है उदास
आंखों में उभर आता है
महाभारत का एक चित्र
कुरुक्षेत्र, युद्ध, चक्रव्यूह
और अभिमन्यू का अंत
आज भी जिंदा है
कई अभिमन्यू
जो हर लड़ाई
अकेले ही लड़ते हैं
व्यूह भेदते हैं और
असमय ही मर जाते हैं
पर
यह हमारा आत्म हनन नहीं
चिंतन – मनन है
निर्वासित कर दिया गया है जो
अनुत्तरित प्रश्न
वही जागरण की भोर बन
उभरता है
फूल बन खिल जाता है
सूरज बन चमकता
मानवता का जैसे
हो गया हो पुनर्जन्म।