मर्सिया-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
क्या लिए जाते हो तुम कन्धों पे यारो
इस जनाज़े में तो कोई भी नहीं है,
दर्द है न कोई, न हसरत है, न गम है….
मुस्कराहट की अलामत है न कोई आह का नुक्ता
और निगाहों की कोई तहरीर न आवाज़ का कतरा
कब्र में क्या दफन करने जा रहे हो…….???
सिर्फ मिट्टी है ये मिट्टी ….
मिट्टी को मिट्टी में दफनाते हुए
रोते हो क्यों ?…
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