मयर पहाड़ में ऐक गों यस हुक्षि-पहाड़ी भाषा काव्य-श्याम सिंह बिष्ट -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shyam Singh Bisht
मयर पहाड़ में ऐक गों यस हुक्षि
कें खारि -धार कें बनगार हुक्षि
आर -पार ओर कनकेधार हूक्षि
बिच- बिचम नरेगार हूक्षि
कें चीण,कें बाखय कें गवार, हुक्षि
नानतिनाक खेलणक बहार हुक्षि
मयर पहाड़ में ऐक गों यस हुक्षि ।
गों में लौंड,लछि, बिरि, गोपि, परि हुक्षि
आम, आड़, काकड़ सबुक खाणक बहार हुक्षि
सबुक आपण ऐक देवी थान हुक्षि
नाम ताल भितेर माल भितेर हुक्षि
माटक लिपि हमार मकान हुक्षि
हाटक सायर, खानखेत, कोंरा हुक्षि
कभत ज्ञय, कभत भकारम धान हूक्षि
मयर पहाड़ में ऐक गों यस हुक्षि ।
कें गोलूक,कें कत्यूरक, कें काईका थान हुक्षि
पाथरक बनि हमार मकान हुक्षि
को रिखार, कौ चीण, को आर-पार बटि उक्षि
ब्या काजूमा, सबूक दगे मिलणक बहार हुक्षि
ना क्षू अब ऊ रौनक ना रंगत
मयर पहाड़ में, ऐक गौं, यस हुक्षि ।
Pingback: आचार्य संजीव सलिल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Acharya Sanjeev Salil – hindi.shayri.page