मयर पहाड़क सब लोग परदेश लघी-पहाड़ी भाषा काव्य-श्याम सिंह बिष्ट -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shyam Singh Bisht
मयर पहाड़क सब लोग परदेश लघी
आम, बूब, मै, बाप, हमार घरपन रगि
मयर पहाड़क सब नानतिन परदेश लघि
ना क्षु केंय भल होसपिटल, ना स्कूल
ना पहाडौ में रोजगार रगी
बचि कुचि, नेता हमार लुट बै लीहीलेगी
पहाड़ो में जाग-जाग शराब,जू, कारौबर हैगो
सूरज असत पहाडी़ मस्त यस सबूक रटन हैगौ
मयर पहाड़क सब लोग परदेश लघि ।
जा हूक्षि घर खेत -खलियान
ऊ सब बंजर हैगी
कें जंगली सुअर, कें बंदर, हैगी
त्योहार हमार सब यू धरिय रगि
जब बटि नानतिन हमार परदेश लघि
आल, पिनाव, गढेयर, सब यादो में रगी
पहारौ में मकान बचि दू-चार रगि
मयर पहाड़क सब लोग परदेश लघि
बूजुरग पहार नाम, हमार स्वर्ग धर गि
बिना परदेस जाईय यस काम कर गयी ।