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मधुज्वाल -सुमित्रानंदन पंत -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sumitranandan Pant Part 6
कितने कोमल कुसुम नवल
कितने कोमल कुसुम नवल
कुम्हलाते नित्य धरा पर झर झर,
यह नभ अब तक सुन प्रिय बालक,
मिटा चुका कितने मुख सुंदर!
मान न कर चंचल यौवन पर
यह मदिरा का बुद्बुद अस्थिर,
सरिता का जल, जीवन के पल
लौट नहीं आते रे फिर फिर!
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,
कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;
लाला के रँग की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर!
फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय
स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,
निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण
प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!
फूलों के कोमल करतल पर
फूलों के कोमल करतल पर
ओसों के कण लगते सुंदर,
मुग्धा का मदिरालस आनन
उमर मुग्ध कर लेता अंतर!
ओ रे, कल के मोह से मलिन,
बीत गया अब वह कल का दिन!
उठ, अब हँस कर पान पात्र भर,
चूम प्रेयसी के मदिराधर!
मादक स्वप्निल प्याला फेनिल
मादक स्वप्निल प्याला फेनिल
साक़ी, फिर फिर भर अंतर का
आलोकित जिनका उर निश्चित
पीते वे मधु मदिराधर का!
जग के तम से, संशय भ्रम से
मोह मलिन जिनका मन मंदिर,
उनके भीतर जीवन-भास्वर
जलता दीप न साक़ी का फिर!
मधु के घन से, मंद पवन से
मधु के घन से, मंद पवन से
गंध उच्छ्वसित अब मधु कानन,
निज मर्माहत मृदु उर का क्षत
विस्मृति से तू भर ले कुछ क्षण!
सघन कुंज तल छाया शीतल,
बहती मंथर धारा कल कल,
फलक ताकता ऊपर अपलक,
आज धरा यौवन से चंचल!
मदिरा पी रे, धीरे धीरे
साक़ी के अधरों की कोमल,
उसे याद कर जिसकी रज पर
आज अंकुरित नव दूर्वादल!
सरित पुलिन पर सोया था मैं
सरित पुलिन पर सोया था मैं
मधुर स्वप्न सुख में तल्लीन,
विधु वदनी बैठी थी सन्मुख
कर में मधु घट धरे नवीन!
झलक रहा था मदिर सुरा में
प्रेयसि का मुख बिम्ब तरल,
रजत सीप में मुक्ता जैसे
प्रातः सर में रक्त कमल!
उसी समय मेरे कानों में
गूँज उठी कंठ ध्वनि घोर,
बीती रात, जाग रे ग़ाफ़िल,
तज सुख स्वप्न, हुआ अब भोर!