मंज़र-मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz
आसमां आज इक बहरे-पुरशोर है
जिसमें हर सू रवां बादलों के जहाज़
उनके अरशे पे किरनों के मसतूल हैं
बादबानों की पहने हुए फुरगुलें
नील में गुम्बदों के जज़ीरे कई
एक बाज़ी में मसरूफ़ है हर कोई
अबाबील कोई नहाती हुई
कोई चील ग़ोते में जाती हुई
कोई ताक़्त नहीं इसमें ज़ोर-अज़मा
कोई बेड़ा नहीं है किसी मुल्क का
इसकी तह में कोई आबदोज़ें नहीं
कोई राकट नहीं कोई तोपे नहीं
यूं तो सारे अनासिर हैं यां ज़ोर में
अमन कितना है इस बहरे-पुरशोर में
समरकन्द, मार्च, १९७८
Pingback: पंजाबी कविता -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz – hindi.shayri.page