मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों-सुजानहित -घनानंद-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ghananand
मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों सुखरासि निरंतर,
दंतर हैं गहे आँगुरी ते जो वियोग के तेह तचे पर तंतर,
जो दुख देखति हौं घन आनंद रैनि-दिना बिन जान सुतंतर
जानैं बेई दिनराति बखाने ते जाय परै दिनराति कौ अंतर।