मंच बारूद का नाटक दियासलाई का-गीतिका-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
मंच बारूद का नाटक दियासलाई का
खेल क्या खूब है ये देश की तबाही का।
खुशबुयें छोड़ के फूलों के लिए मरते हो
मालिओ! त्याग दो, मज़हब ये कम-निगाही का।
शब्द को एक तमाशा नहीं, तलवार बना
काम लेना है कलम से तो अब सिपाही का।
उसको सुकरात की मानिन्द ज़हर पीना पड़ा
जिसने भी फर्ज़ निभाया यहाँ सचाई का।
एक कोठे की तवायफ है सियासत सारी
और दल्लाली हुआ काम रहनुमाई का ।
जिसको गोली की ही बोली में मज़ा आता हो
केसे समझेगा वो माने ग़ज़ल रुबाई का।
कागज़ी फूलों से अब तो न उलझ ऐ नीरज
सामने वक्त खड़ा है तेरी विदाई का।
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