भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है-प्राण गीत-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है!
छुपते जाते हैँ सूरज, चांद-सितारे सब
मुरदा मिट्टी अम्बर पर चढ़ती जाती है
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
कंकालों की जुड़ रही भीड़ चौराहे पर,
फिर से बनने चाला है कोई बज्रबान,
बिक रहे प्राण, बिक रहे शीश, बिक रही मौत
फिर से जगने को हैं सोये मरघट मसान,
हर ओर मची है होली खून-पसीने की,
हर ओर अंगारों की खेती लहराती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
है कांप रहीं मन्दिर-मस्जिद की मीनारें
गीता-क़ुरान के अर्थ बदलते जाते हैँ
ढहते जाते हैं दुर्ग द्वार, मक़बरे-महल
तख्तों पर इस्पाती बादल मँडराते हैं,
अंगड़ाई लेकर जाग रहा इन्सान नया
ज़िन्दगी कब्र पर बैठी बीन बजाती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
मासूम लहू की गंगा में आ रही बाढ़,
नादिरशाही सिंहासन डूबा जाता है,
गल रही बर्फ-सी डालर की काली कोठी,
एटम को भूखा पेट चबाये जाता है,
निकला है नभ पर नये सबेरे का सूरज
हर किरन नई दुलहिन-सी सेज सजाती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
पड़ रहीं समय की भौंहों में सलबटें-शिकन,
विन्धाचल करवट शीघ्र बदलने वाला है,
उठने वाली है आग समुन्दर के दिल से
हिमवान किसी का खून उगलने वाला है,
हर एक हवा का रुख कुछ बदला-बदला है,
हर एक फ़िजां में गरमी-सी दिखलाती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
तुम कफ़न चुराकर बैठ गए जा महलों में
देखो ! गांधी की अर्थी नंगी जाती है,
इस रामराज्य के सुघर रेशमी दामन में
देखो सीता की लाज उतारी जाती है,
उस ओर श्याम की राधा वह वृन्दावन में
आलिंगन-चुम्बन बेच पेट भर पाती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
तुमने नवयुग के बिश्वासों, को बहकाया
भूखे के मुंह तक से तुम कौर छीन लाये,
ब्लैक-ट्रेड किया तुमने मां की चोली तक से
आज़ादी तक धर चोर-बाज़ारों में आये,
मानवता के क़ातिलो ! मगर यह याद रहे
क़ातिल की ही तलवार उसे खा जाती है ।
हो सावधान ! सँभलो ओ ताज-तख्तवालो !
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।