ब्लैक आऊट-सरे-वादी-ए-सीना -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz
जब से बे-नूर हुई हैं शमएं
ख़ाक में ढूंढता फिरता हूं न जाने किस जा
खो गई हैं मेरी दोनों आंखें
तुम जो वाकिफ़ हो बतायो कोई पहचान मेरी
इस तरह है कि हर इक रंग में उतर आया है
मौज-दर-मौज किसी ज़हर का कातिल दरिया
तेरा अरमान, तेरी याद लिये जान मेरी
जाने किस मौज में ग़लतां है कहां दिल मेरा
एक पल ठहरो कि उस पार किसी दुनिया से
बर्क आये मेरी जानिब, यदे-बैज़ा लेकर
और मेरी आंखों के गुमगशता गुहर
जामे-ज़ुलमत से सियह मसत
नई आंखों के शबताब गुहर
लौटा दे
एक पल ठहरो कि दरिया का कहीं पाट लगे
और नया दिल मेरा
ज़हर में घुल के, फ़ना हो के
किसी घाट लगे
फिर पये-नज़र नये दीदा-ओ-दिल ले के चलूं
हुस्न की मदह करूं, शौक का मज़मूं लिक्खूं
सितम्बर, १९६५