बिन खेवक की नैया-वंशीवट सूना है -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
उमरिया बिन खेवक की नैया ।
पाल नहीं, पतघार नहीं और तेज़ चले पुरवैया ।।
छिन उछरे, छिन गोता खाए,
ना डूबे, ना पार लगाए,
भटके इत-उत बीच भंवर ज्यों भूली साँझ चिरैया।
उमरिया बिन खेवक की नैया ।।
धार अजानी, नदी अजानी,
चहुँ दिस पानी ही बस पानी,
इस पर ऐसी रात अंधेरी टिमके इक न तरैया।
उमरिया बिन खेवक की नैया ।।
संग न कोई सखा-संगाती,
आय न जाय किसी की पाती,
रंगी या पार लगेगी जाने राम-रखैया।।
उमरिया बिन खेवक की नैया ।।
पूँजी सिगरी नई-पुरानी,
तिल-तिलकर जल बिच समानी,
इक जैसे अब दोनों हमको महल मिले कि मड़ैया।
उमरिया बिन खेवक की नैया ।।
कैसा पूरब, कैसा पच्छिम?
कैसा उद्गम, कैसा संगम?
वो ही अपना घाट साँस की जहाँ कटे कनकैया
उमरिया बिन खेवक की नैया ।।
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