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बिखरे मोती-मौलाना रूमी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maulana Rumi Poetry Part 2
दुश्वार
हज़रते ईसा से पूछा किसी ने जो था हुशियार
इस हस्ती में चीज़ कया है सबसे ज़्यादा दुश्वार
बोले ईसा सबसे दुश्वार ग़ुस्सा ख़ुदा का है प्यारे
कि जहन्नुम भी लरज़ता है उनके डर के मारे
पूछा कि खुदा के इस क़हर से जां कैसे बचायें ?
वो बोले अपने ग़ुस्से से इसी दम नजात पायें
नायाब इल्म
सोने और रुपये से भर जाय जंगल अगर
बिना मर्ज़ी ख़ुदा की ले नहीं सकते कंकर
सौ किताबें तुम पढ़ो अगर कहीं रुके बिना
नुक़्ता ना रहे याद खुदा की मर्ज़ी के बिना
और गर ख़िदमत करी, न पढ़ी एक किताब
गिरेबां के अन्दर से आ जाते इल्म नायाब
लतीफ़ा
लतीफ़ा एक तालीम है, ग़ौर से उस को सुनो
मत बनो उसके मोहरे, ज़ाहिरा में मत बुनो
संजीदा नहीं कुछ भी, लतीफ़ेबाज़ के लिए
हर लतीफ़ा सीख है एक, आक़िलों के लिए
बदशकल
बदशकल ने खुद को आईने के सामने किया
ग़ुस्से से भर गया और चेहरा पलट लिया
बदगुमान ने जब किसी का कोई जुर्म देखा
दोज़ख़ की आग में वो भीतर से जल उठा
अपने ग़ुरूर को दीन की हिमायत बताता है
खुदी के कुफ़्र को ख़ुद में देख नहीं पाता है
तौबा
जो उमर गुज़र गई, जड़ उसकी है ये दम
सींचो तौबा से उसे, गर रही नहीं है नम
उस उमर की जड़ को दो आबे-हयात ज़रा
ताकि वो दरख़्त हो जाय फिर से हरा-भरा
सब माज़ी तेरा इस पानी से सुधर जाएगा
ज़हर पुराना सब इस से शक्कर हो जाएगा
तौबा
तन मेरा और रग मेरी तुम से भरी हुईं है
तौबा को रखने की मुझ में जगह नहीं है
तो तय है कि तौबा को दिल से निकाल दूं
जन्नत की ज़िन्दगी से भी तौबा कैसे करूं ?
इश्क़
इश्क़ हरा देता है सब को, मैं हारा हुआ हूं
खारे इश्क़ से शक्कर सा मीठा हुआ हूं
ऐ तेज़ हवा ! मैं सूखा पत्ता सामने तेरे हूं
जानता नहीं किस तरफ़ जा कर मैं गिरूं
दर्द
दर्द पुरानी दवा को नया बना देता है
दर्द उदासी की हर शाख़ काट देता है
दर्द चीज़ों को नया बनाने का कीमिया है
मलाल कैसे हो उठ गया दर्द जहाँ है
अरे नहीं बेज़ार हो कर मत भर आह सर्द
खोज दर्द, खोज दर्द, दर्द, दर्द और दर्द
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