बालीं पे कहीं रात ढल रही है-कविता -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz
बालीं पे कहीं रात ढल रही है
या शम्अ पिघल रही है
पहलू में कोई चीज़ जल रही है
तुम हो कि मेरी जान निकल रही है
बालीं पे कहीं रात ढल रही है-कविता -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz
बालीं पे कहीं रात ढल रही है
या शम्अ पिघल रही है
पहलू में कोई चीज़ जल रही है
तुम हो कि मेरी जान निकल रही है