बात अब करते हैं क़तरे भी समन्दर की तरह-गीतिका-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
बात अब करते हैं क़तरे भी समन्दर की तरह
लोग ईमान बदलते हैं कलेण्डर की तरह ।
कोई मंज़िल न कोई राह, न मक़सद कोई
है ये जनतंत्र यतीमों के मुक़द्दर की तरह ।
बस वही लोग बचा सकते हैं इस कश्ती को
डूब सकते हैं जो मंझधार में लंगर की तरह ।
मैंने खुशबू-सा बसाया था जिसे तन-मन में
मेरे पहलू में वही बैठा है खंजर की तरह ।
मेरा दिल झील के पानी की तरह काँपा था
तुमने वो बात उछाली थी जो कंकर की तरह ।
जिनकी ठोकर से किले काँप के ढह जाते थे
कल की आँधी में उड़े लोग वो छप्पर की तरह ।
तुझसी शोहरत न किसी को भी मिले ऐ ‘नीरज’
फूल भी फेंकें गये तुम प’ तो पत्थर की तरह ।