बातों में अल्पविराम, निस्तब्ध कर गया जीवन-अल्पविराम-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
पहले आँखों के बसा प्रणय-वंदन
लिपटा बरसों तक स्पर्श से तन-मन
फिर मौन अंधेरे मे गुम हुये उलझे स्पंदन
मरा स्वर्ण-मृग उर की तपन मे करता क्रंदन
बातों में अल्पविराम, निस्तब्ध कर गया जीवन
समय के साथ अलग हुये सारे बंधन
न देखा फिर कभी स्मृतियों का दर्पण
भावनाएं जम गयी जैसे निर्वासित रज-कण
सुबह न ढूंढा किसी ने कहाँ खो गया यौवन
बातों में अल्पविराम, निस्तब्ध कर गया जीवन
कौन विकल यहाँ अब किस से मिलने
किसके हित सिंचती राजनीगंधा खिलने
पग बढ़े तो प्रणय लगा अधम सा फिसलने
अजनबी हुयी आँखें, अब रहा न कोई आकर्षण
बातों में अल्पविराम, निस्तब्ध कर गया जीवन