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बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh Part 11
यौवन
दिन और रात
के बीच
परछाइयाँ
चिड़ियों के उड़ान की
याद आती हैं
यूँ भी
हमारी आख़िरी मुलाक़ातें ।
तुम
उड़ता हूँ
और भटकता हूँ
दिन भर पथ में ही
सुलगता हूँ
पर अच्छा नहीं लगता
जब तक
लौट कर देख न लूँ कि तुम हो,
तुम ।