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बाँसुरी -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 4
सपने में
अम्मा आकर काजल देतो
औ अनखनियाँ सपने में।
भैया आकर मुझे उठा
लेता है कनियाँ सपने में ।
मुन्नू आता, चाचा आते,
दादा आते सपने में।
खुल जाता है चन्द मदरसा
गुरू पढ़ाते सपने में।
करती म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
आती बिल्ली सपने में।
पेड़ खड़ा दिखलाता उस पर
चढ़ती गिल्ली सपने में।
मिल जाते हैं साथी संगी
खेल खिलौना सपने में।
बिछ जाती है खटिया मेरी
और बिछौना सपने में ।
नानी कहती बैठ कहानी
हम सुनते हैं सपने में।
फुलवारी में घूम घूम
कलियाँ चुनते हैं सपने में।
सूर्य निकलता, धूप निकलती,
दिन छा जाता सपने में।
चिड़ियाँ यूँ चूँ शोर मचातीं
गाना गाती सपने में।
कोई ऐसा काम नहीं,
जो नहीं दिखाता सपने में।
नाई आता, धोबी आता,
माली आता सपने में।
कुंजड़िन आकर बेचा करती
आलू भंटा सपने में।
टन टन टन टन बज उठता
छुट्टी का घंटा सपने में।
डस लेती है कभी कभी
आ मुझे दतैया सपने में।
दुख के मारे चिल्लाता मैं
दैया ! दैया ! सपने में।
रोता हूँ, चिल्ला पड़ता हूँ
गिरकर लड़खड़ सपने में ।
आँख खुली, तब बात समझता,
था यह गड़बड़ सपने में।
तुम क्या करते, हम क्या करते ?
लग जाते अंगूर नीम में
और कुए से दूध निकलता,
बिना तेल के डाले ही यदि
घर में दिया रात दिन जलता।
जोते बोये बिना खेत में गेहूँ,
धान, चना उग आते,
केला, सेब, नासपाती,
संतरा, आम हर ऋतु में आते ।
रुपया गिन्नी फैली होतीं
पृथ्वी पर जैसे हो गिट्टी,
छू लेते हम जिसे चाव से
सोना बन जाती वह मिट्टी !
इच्छा करते जहाँ ज़रा भी
तुरत वहीं पर जा सकते हम,
इच्छा करते जिसकी भी वह
चीज़ तुरत ही पा सकते हम!
बिना पढ़े ही विद्या आती
कभी न हम दुनिया में मरते,
तो क्या बतला सकते बच्चो!
हम क्या करते, तुम क्या करते ?
प्रयाण-गीत
काम करेंगे हम हम हम !
नाम करेंगे हम हम हम !!
बढ़े चलेंगे,
चढ़े चलेंगे;
हिम्मत से
दिल मढ़े चलेंगे।
बोलेंगे हर हर बम बम !
काम करेंगे हम हम हम!
नहीं रुकेंगे,
नहीं झुकेंगे,
आये बला
चिनौती दंगे!
चले चलेंगे धम धम धम!
काम करेंगे हम हम हम !
अड़ जायेंगे,
लड़ जायेंगे,
भिड़े मौत आ
लड़ जायेंगे।
नहीं हरेंगे थम थम थम !
काम करेंगे हम हम हम!
वीर बनेंगे,
धीर बनेंगे,
हम बिजली के
तीर बनेंगे।
चमकेंगे जग में चम चम!
काम करेंगे हम हम हम!
नाम करेंगे हम हम हम!
प्रार्थना
प्रभो,
न मुझे बनाओ हिमगिरि,
जिससे सिर पर इठलाऊँ।
प्रभो, न मुझे बनाओ गंगा,
जिससे उर पर लहराऊँ।
प्रभो,
न मुझे बनाओ उपवन,
जिससे तन की छबि होऊँ ।
प्रभो, बना दो मुझे सिंधु,
जिससे भारत के पद धोऊँ।
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