बह नहीं रहे होंगे-त्रिकाल संध्या-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra
बह नहीं रहे होंगे
रेवा के किनारे-किनारे
उन दिनों के
हमारे शब्द
दीपों की तरह
पड़े तो होंगे मगर
पहुँच कर वे
अरब-सागर के किनारे पर
कंकरों और शंखो और
सीपों की तरह!