बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई
सड़क पे फेंक दी तो ज़िंदगी निहाल हुई
बड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों से
कि सबसे पहले यहीं रौशनी हलाल हुई
कोई निजात की सूरत नहीं रही, न सही
मगर निजात की कोशिश तो एक मिसाल हुई
मेरे ज़ेह्न पे ज़माने का वो दबाब पड़ा
जो एक स्लेट थी वो ज़िंदगी सवाल हुई
समुद्र और उठा, और उठा, और उठा
किसी के वास्ते ये चाँदनी वबाल हुई
उन्हें पता भी नहीं है कि उनके पाँवों से
वो ख़ूँ बहा है कि ये गर्द भी गुलाल हुई
मेरी ज़ुबान से निकली तो सिर्फ़ नज़्म बनी
तुम्हारे हाथ में आई तो एक मशाल हुई