बरगद-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
मेरे रस्ते में इक मोड़ था
और उस मोड़ पर
पेड़ था एक बरगद का
ऊँचा
घना
जिसके साए में मेरा बहुत वक़्त बीता है
लेकिन हमेशा यही मैंने सोचा
कि रस्ते में ये मोड़ ही इसलिए है
कि ये पेड़ है
उम्र की आँधियों में
वो पेड़ एक दिन गिर गया
मोड़ लेकिन है अब तक वहीं का वहीं
देखता हूँ तो
आगे भी रस्ते में
बस मोड़ ही मोड़ हैं
पेड़ कोई नहीं
रास्तों में मुझे यूँ तो मिल जाते हैं मेहरबाँ
फिर भी हर मोड़ पर
पूछता है ये दिल
वो जो इक छाँव थी
खो गई है कहाँ।