बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा
ख़रीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा
मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा
बड़ा न छोटा कोई, फ़र्क़ बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक-सा कफ़न देखा
ज़बाँ है और, बयाँ और, उसका मतलब और
अजीब आज की दुनिया का व्याकरण देखा
लुटेरे, डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे
उन्होंने आज जो संतों का आचरण देखा
जो सादगी है कहन में हमारे “नीरज” की
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा