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फ़िल्मी गीत-शैलेन्द्र -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shailendra Part 3
दोस्त दोस्त ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा
प्यार प्यार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा
ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
अमानतें मैं प्यार की
गया था जिसको सौंप कर
वो मेरे दोस्त तुम ही थे
तुम्हीं तो थे
जो ज़िंदगी की राह मे
बने थे मेरे हमसफ़र
वो मेरे दोस्त तुम ही थे
तुम्हीं तो थे
सारे भेद खुल गए
राज़दार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा
ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा …
सफ़र के वक़्त में पलक पे
मोतियों को तौलती
वो तुम ना थी तो कौन था
तुम्हीं तो थी
नशे की रात ढल गयी
अब खुमार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा
ऐतबार ना रहा, ऐतबार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा …
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे
जनमभूमि के काम आया मैं, बड़े भाग हैं मेरे
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे, मत रो
हँसकर मुझको आज विदा कर, जनम सफल हो मेरा
रोता जग में आया, हँसता चला ये बालक तेरा
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे, मत रो
धूल मेरी जिस जगह तेरी मिट्टी से मिल जाएगी
सौ-सौ लाल गुलाबों की फुलबगिया लहराएगी
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे, मत रो
कल मैं नहीं रहूँगा लेकिन, जब होगा अँधियारा
तारों में तू देखेगी हँसता एक नया सितारा
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे, मत रो
फिर जनमूँगा उस दिन जब आज़ाद बहेगी गंगा, मैया
उन्नत भाल हिमालय पर जब लहराएगा तिरंगा
मत रो माता …
अबके बरस भेज भैया को बाबुल
अबके बरस भेज भैया को बाबुल,
सावन में लीजो बुलाय रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ,
दीजो संदेसा भिजाय रे
अंबुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे,
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आँगन में बाबुल,
सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा,
बचपन की जब याद आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल
बैरन जवानी ने छीने खिलौने,
और मेरी गुड़िया चुराई
बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली,
फिर क्यूँ हुई मैं पराई
बीते रे जुग, कोई चिठिया ना पाती,
ना कोई नैहर से आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल …
तू प्यार का सागर है
तू प्यार का सागर है, तेरी इक बून्द के प्यासे हम
लौटा जो दिया तुमने, चले जाएँगे जहाँ से हम
तू प्यार का सागर है …
घायल मन का, पागल पँछी उड़ने को बेक़रार
पँख हैं कोमल, आँख है धुँधली, जाना है सागर पार
जाना है सागर पार
अब तू ही इसे समझा, राह भूले थे कहाँ से हम
तू प्यार का सागर है
इधर झूमती गाए ज़िन्दगी, उधर है मौत खड़ी
कोई क्या जाने कहाँ है सीमा, उलझन आन पड़ी
उलझन आन पड़ी
कानों में ज़रा कह दे, कि आएँ कौन दिशा से हम
तू प्यार का सागर है
वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर
वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?
दम ले ले घड़ी भर, ये छैयाँ पाएगा कहाँ ?
बीत गए दिन प्यार के पल-छिन
सपना बनी वो रातें
भूल गए वो, तू भी भुला दे
प्यार की वो मुलाकातें
सब घोर अन्धेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?
कोई भी तेरी राह न देखे
नैन बिछाए न कोई
दर्द से तेरे कोई न तड़पा
आँख किसी की न रोई
कहे किसको तू मेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?
कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी
पानी पे लिखी लिखाई
है सबकी देखी, है सबकी जानी
हाथ किसी के ना आई
कुछ तेरा न मेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
हम दर्द के सुर में गाते हैं
जब हद से गुज़र जाती है खुशी
आँसू भी छलकते आते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत…
पहलू में पराये दर्द बसाके
हँसना हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत …
काँटों में खिले हैं फूल हमारे
रंग भरे अरमानों के
नादान हैं जो इन काँटों से
दामन को बचाये जाते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत …
जब ग़म का अन्धेरा घिर आये
समझो के सवेरा दूर नहीं
हर रात की है सौगात यही
तारे भी यही दोहराते हैं
हैं सबसे मधुर वो गीत …
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