फ़ासला-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
तकिये पे तेरे सर का वह टिप्पा है, पड़ा है
चादर में तेरे जिस्म की वह सोंधी सी–ख़ुशबू
हाथों में महकता है तेरे चेहरे का एहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी क़रीब है कि तुझे देखूँ तो कैसे
थोड़ी-सी अलग हो तेरे चेहरे को देखूँ
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