प्रमाद द्वन्द-कविता -संजीव कुमार दुबे -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sanjeev Kumar Dubey
अभीप्साओं के द्वन्द्व से विरत होकर
व्यस्त होने के प्रलापों से निकलकर
वेदनाओं पर कभी जब गीत लिखूँगा
तब तुम्हें सूचित करूँगा! —(1)
अभी व्यसनों के समय में
क्यों करूं ये व्यर्थ बातें,
मत्त जीवन, मदित तनमन
खेलती हैं रजत रातें।
नृत्य पद हैं पंकजों पर,
रमणियों के अधर चुम्बन।
मंजरों की खुशबुओं से
महकता चहुँ ओर उपवन।
इस प्रमाद से बाहर निकलकर,
नेत्र उन्मीलन करूंगा,
तब तुम्हें सूचित करूंगा।
वेदनाओं पर कभी——-। —(2)
पवन प्लावन, नीर क्रीड़ा,
अभी तो हैं सुर निराले।
मद भरे गीतों के सुर पर,
खनकते हैं मद्य प्याले।।
आसमां के वृहद तल पर
खींचता हूँ चित्र सुन्दर।
इन्द्रधनुषी कल्पनाओं का
बह रहा मन में समन्दर।
तैर कर जब पार उतरूंगा,
तब तुम्हें सूचित करूंगा।
वेदनाओं पर कभी –‘ —(3)
रवि रश्मियों से स्वर्णशोभित
हैं भवन उद्यान मेरे।
ज्योत्स्ना के अंक में लिपटे
बिबिध परिधान मेरे।
उच्च शिखरों के परिसरों में
कैद है अहंकार मेरा
स्वयं निर्मित भ्रान्तियों का
हित सृजन संसार घेरा।
टूटकर ,खंडहर होकर जब गिरेगा
तब तुम्हें सूचित करूंगा।
वेदनाओं पर कभी जब,
गीत लिखूंगा,
तब तुम्हें सूचित करूंगा।—(4)
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