प्यार सिखाना व्यर्थ है -बादर बरस गयो-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
अब मुझको प्यार सिखाना व्यर्थ है।
जब बहार के दिन थे बोली न कोयलिया,
जब वृन्दावन तड़प रहा था आया तब न सांवलिया,
बिलख बिलख मर गयी मगर जब विकल विरह की राधा,
नयन यमुन तट प्राण; मिलन का रास रचाना व्यर्थ है।
अब मुझको प्यार सिखाना व्यर्थ है।
एक बूँद के लिए पपीहे ने सौ सिन्धु बहाये,
किन्तु बादलों ने जी भर कर पाहन बरसाये,
तरस-तरस बन गयी मगर जब तृप्ति तृषा ही तो फिर,
पथराये अधरों पर अमृत भी बरसाना व्यर्थ है।
अब मुझको प्यार सिखाना व्यर्थ है।
अब सब सपने धूलल मर चुकी हैं सारी आशाएं,
टूटे सब विश्वास और बदली सब परिभाषाएं,
जीता हूँ इसलिए कि जीना भी है एक विवशता,
मरने के भी लिए ज़िन्दगी की है आवश्यकता,
इसलिए प्रिय प्राण ! किसी की सुधि का दीप सलोना,
मेरे अंधियारे खंडहर में आज जलाना व्यर्थ है।
अब मुझको प्यार सिखाना व्यर्थ है।
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