पीले फूल कनेर के-चैत्या-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
पीले फूल कनेर के!
पथ अगोरते।
सिंदूरी बडरी अँखियन के
फूले फूल दुपेर के!
दौड़ी हिरना
बन-बन अँगना—
बेंतवनों की चोर मुरलिया
समय-संकेत सुनाए,
नाम बजाए;
साँझ सकारे
कोयल-तोतों के संग हारे
ये रतनारे—
खोजे कूप, बावली, झाऊ,
बाट, बटोही, जमुन कछारें—
कहाँ रास के मधु पलास हैं?
बटशाखों पे सगुन डाकते मेरे मिथुन बटेर के!
पीले फूल कनेर के!
पाट पट गए,
कगराए तट,
सरसों घेरे खड़ी हिलाती पीत-सँवरिया सूनी पगवट,
सखि! फागुन की आया मन पे हलद चढ़ गई—
मँहदी महुए की पछुआ में
नींद सरीखी लाज उड़ गई—
कागा बोले मोर अटरिया
इस पाहुन बेला में तूने।
चौमासा क्यों किया पिया?
क्यों किया पिया?
यह टेसू-सी नील गगन में हलद चाँदनी उग आई री—
उग आई री—
पर अभी न लौटे उस दिन गए सबेर के!
पीले फूल कनेर के!