पीपल के पीले पत्ते-युगधारा -नागार्जुन-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nagarjun
खड़-खड़ खड़ करने वाले
ओ पीपल के पीले पत्ते
अब न तुम्हारा रहा ज़माना
शक्ल पुरानी ढंग पुराना
आज गिरो कल गिरो कि परसों
तुमको तो अब गिरना ही है
बदल गई ऋतु राह देखती लाल लाल पत्तों की दुनियाँ
हरे-हरे कुछ भूरे-भूरे टूसों से लद रही टहनियाँ
इनका स्वागत करते जाओ
पतझड़ आया झरते जाओ
ओ पीपल के पीले पत्ते
छलक रहा इसमें जीवन रस
दौड रही इनपे लाली
बुनने लगे आँख खुलते ही
ये स्वर्णिम स्वप्नों की जाली
यह इनका युग ,ये इनके दिन
रहे अंत की घड़ियाँ तुम गिन
हट जाओ ,इनको अवसर दो
छोटे है बढ़ने का वर दो
पूर्ण हो रही आयु तुम्हारी
तुम हल्के इनका दिल भारी
राह रोक कर खड़े न होना
झूठ-मुठ के बड़े न होना
सारा श्रेय तुम्हें ही देंगें
अपने पूर्वज की उदारता
जीवन भर याद रखेंगें
ओ पीपल के पीले पत्ते !