पल भर का अल्पविराम, उड़ गयी कस्तूरी-अल्पविराम-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
किस ऋतु मे मतवाली बोली थी
कब प्रणय भरी आँखें खोली थी
कहाँ छिपी है रातें जो मधु घोली थी
अब अलसायी काया, रह गयी बात अधूरी
पल भर का अल्पविराम, उड़ गयी कस्तूरी
उन अधरों पर टूटती रातें सहना
जड़ आँखों से आंसुओं का बहना
ऐसी मन की बिछलन जग से क्या कहना
पास रह कर भी बढ़ती गयी स्पर्श की दूरी
पल भर का अल्पविराम, उड़ गयी कस्तूरी
आरंभ हुई कथा फिर न बंद हुई
उस तक न कभी धड़कन मंद हुई
मर कर भी वह स्मृतियाँ मकरंद हुयी
मरीचिका मे किसकी होती है आशाएँ पूरी
पल भर का अल्पविराम, उड़ गयी कस्तूरी