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पदावली-मीरा बाई -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Meera Bai part 36
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी॥टेक॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥४॥
हो कांनां किन गूँथी जुल्फां कारियां
हो कांनां किन गूँथी जुल्फां कारियां।।टेक।।
सुधर कला प्रवीन हाथन सूँ, जसुमति जू ने सबारियां।
जो तुंम आओ मेरी बाखरियां, जरि राखूँ चन्दन किवारियां।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, इन जुलफन पर वारियां।।
हेरी मा नन्द को गुमानी
हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो।।टेक।।
गहे द्रुमडार कदम को ठाड़ो, मृदु मुसकाय म्हारी ओर हँस्यो।
पीताम्बर कट काछनी, काले रतन जटित माथे मुकुट कस्यो।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो।।
हे मा बड़ी बड़ी अँखियन वारो
हे मा बड़ी बड़ी अँखियन वारो, साँवरो मो तन हेरत हँसिके।।टेक।।
भौंह कमान वान बाँके लोचन, मारत हियरे कसिके।
जतन करो जन्तर लिखो बाँवा, ओखद लाऊँ घँसिके।
ज्यों तोकों कछु और बिथा हो, नाहिंन मेरो बसिके।
कौन जतन करों मोरी आली, चन्दन लाऊँ घँसिके।
जन्तर मन्तर जादू टोना, माधुरी मूरति बसिके।
साँवरी सूरत आन मिलावो, ठाढी रहूँ में हँसिके।
रेजा रेजा भेयो करेजा, अन्दर देखो घँसिके।
मीराँ तो गिरधर बिन दैखे, कैसे रहे घर बसिके।।
हातीं घोडा महाल खजीना
हातीं घोडा महाल खजीना दे दवलतपर लातरे।
करीयो प्रभुजीकी बात सबदीन करीयो प्रभूजीकी बात॥टेक॥
मा बाप और बेहेन भाईं कोई नही आयो सातरे॥१॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर भजन करो दिन रातरे॥२॥
हरि बिन ना सरै री माई
हरि बिन ना सरै री माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।
मीन दादुर बसत जल में, जल से उपजाई॥
तनक जल से बाहर कीना तुरत मर जाई।
कान लकरी बन परी काठ धुन खाई।
ले अगन प्रभु डार आये भसम हो जाई॥
बन बन ढूंढत मैं फिरी माई सुधि नहिं पाई।
एक बेर दरसण दीजे सब कसर मिटि जाई॥
पात ज्यों पीली पड़ी अरु बिपत तन छाई।
दासि मीरा लाल गिरधर मिल्या सुख छाई॥
हरि तुम हरो जन की भीर
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥
बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर।
दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
पाठांतर
हरि थें हर्या जण री भीर।।टेक।।
द्रोपता री लाल राख्याँ थें बढायाँ चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यां आप सरीर।
बूड़ताँ गजराज, राख्याँ, कट्याँ कुंजर भीर।
दासि मीरां लाल गिरधर, हराँ म्हारी भीर।।
हमारे मन राधा स्याम बनी
हमारे मन राधा स्याम बनी।।टेक।।
कोई कहै मीराँ भई बावरी, कोई कहै कुलनासी।
खोल के घूँघट प्यार के गाती, हरि ढिग नाचत गासी।
वृन्दावन की कुँज गलिन में, भाल तिलक उर लासी।
विष को प्याला राणा जी भेज्याँ, पीवत मीराँ हांसी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, भक्ति, मार्ग में फाँसी।।
हमरे चीर दे बनवारी
हमरे चीर दे बनवारी॥टेक॥
लेकर चीर कदंब पर बैठे। हम जलमां नंगी उघारी॥१॥
तुमारो चीर तो तब नही। देउंगा हो जा जलजे न्यारी॥२॥
ऐसी प्रभुजी क्यौं करनी। तुम पुरुख हम नारी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुम जीते हम हारी॥४॥