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पदावली-मीरा बाई -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Meera Bai part 31
स्याम सुन्दर पर वाराँ जीवड़ा
स्याम सुन्दर पर वाराँ जीवड़ा डाराँ स्याम।।टेक।।
थारे कारण जग जण त्यागाँ लोक लाज कुल डाराँ।
थे देख्याँ बिण कल णा पड़तां, णेणाँ चलताँ धाराँ।
क्यासूँ कहवाँ कोण बूझावाँ, कठण बिरहरी धाराँ।
मीराँ रे प्रभु दरशण दीस्यो थे चरणाँ आधाराँ।।
स्याम मिलण रो घणो उभावो
स्याम मिलण रो घणो उभावो, नित उठ जोऊ बाटड़ियाँ।।टेक।।
दरस बिना मोहि कुछ न सुहावै, जक न पड़त है आँखडियाँ।
तलफत तलफत बहु दिन बीता, पड़ी बिरह की पाशड़ियाँ।
अब तो बेगि दय करि साहिब, मैं तो तुम्हारी दासड़ियाँ।
नैण दुखी दरसण कूँ तरसै, नाभिन बैठे साँसड़ियाँ।
राति दिवस यह आरति मेरे, कब हरि राखै पासड़ियाँ।
लागि लगन छूटण की नाहीं, अब क्यूँ कीजै आँटड़ियाँ।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, पूरी मन की आसड़ियाँ।
सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी
सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी;
म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ, हो माई।।टेक।।
राणा जी रूठयो बाँरो देस रखासी;
हरि रूठयाँ कुम्हलायां, हो माई।
लोक लाज की काणा न मानूँ।
निरभै निसाण घुरास्यां, हो माई।
स्याम नाम का झांझ चलास्यां; भवसागर तर जास्यां हो माई।
मीराँ सरण सवल गिरधर की,
चरण कंवल लपटास्यां, हो माई।।
सुण लीजो बिनती मोरी
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तोरी।
तुम तो पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।।
मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुँचाये निज धामा।
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।।
सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई।।
करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।।
सांवरो नन्द नन्दन, दीठ पड्याँ माई
सांवरो नन्द नन्दन, दीठ पड्याँ माई।
डार्यां सब लोक लाज सुध बुध बिसराई।
मोर चन्द्रका किरीट मुगट जब सोहाई।
केसर रो तिलक भाल लोचन सुखदाई।
कुण्डल झलकाँ कपोल अलकाँ लहराई।
मीणा तज सरवर ज्यों मकर मिलन धाई।
नटवर प्रभु भेष धर्यां रूप जग लोभाई।
गिरधर प्रभु अंग अंग, मीरा बलि जाई।।
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
थें छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥
पाठांतर
साँवरो म्हारो प्रीत णिभाज्यो जी।।टेक।।
थें छो म्हारो गुण रो सागर, औगुण म्हाँ बिसराज्यो जी।
लोकणा सीझयाँ मन न पतीज्यां मुखड़ा सबद सुणाज्यो जी।
दासी थाँरी जणम जणम म्हारे आँगण आज्यो जी।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बेड़ा पार लगाज्यो जी।।
सहेलियाँ साजन घर आया हो
सहेलियाँ साजन घर आया हो।
बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।।
रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो।
पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।।
पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो।
पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो।
हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो।
मरा सखी के आगणै दूधां बूठा मेह हो।।
पाठांतर
सहेलियां साजन घर आया हो।।टेक।।
बहोत दिना की जोवती, बिरहिन पिव पाया हो।
रतन करूँ नेछावरी, ले आरति साजुँ हो।
पिया का दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूँ हो।
पांच सखी इकट्ठी भई, मिलि मंगल गावै हो।
पिय की रती बधावणां आणन्द अंगि न मावै हो।
हरि सागर सू नेहरो, नैणा बाँध्यो सनेह हो।
मीरां सखी के आंगणै, दूधां बूँठा मेह हो।।
सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर
सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर।।टेक।।
मोर मुगट पीताम्बर सोहै, कुण्डल की झकझोर।
बिन्द्रावन की कुँज गलिन में, नाचत नन्द किसोर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, चरण कँवल चितचोर।।