पताका-कविता-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
बालक के हाथ में पहुँच
वह फटी पतंग
बन गई है
पताका।
कितने प्रसन्न हैं दोनों—
धूप में चिटख आया है रंग
हवा में लहरा रहे हैं अंग-अंग
दोनों के।
पतंग ने
उसे बालक से बना दिया है
विजेता
और बालक ने
उसे अपने गर्वोन्नत हाथों की
विजयनी पताका।
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