post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
पड़ोसी-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
पड़ोसी-1
कुछ दिन से पड़ोसी के
घर में सन्नाटा है,
ना रेडियो चलता है,
ना रात को आँगन में
उड़ते हुए बर्तन हैं।
उस घर का पला कुत्ता–
खाने के लिये दिन भर,
आ जाता है मेरे घर
फिर रात उसी घर की
दहलीज पे सर रखकर
सो जाया करता है!
पड़ोसी-2
आँगन के अहाते में
रस्सी पे टंगे कपड़े
अफसाना सुनाते हैं
एहवाल बताते हैं
कुछ रोज़ रूठाई के,
माँ बाप के घर रह कर
फिर मेरे पड़ोसी की
बीबी लौट आयी है।
दो चार दिनों में फिर,
पहले सी फ़िज़ा होगी,
आकाश भरा होगा,
और रात को आँगन से
कुछ “कामेट” गुज़रेंगे!
कुछ तश्तरियां उतरेंगीं!